सोमवार, 1 सितंबर 2025

जब काला झंडा दिखाने वाले को राहुल ने बुला लिया…

 जब काला झंडा दिखाने वाले को राहुल ने बुला लिया…

राहुल गांधी के बिहार यात्रा को असफल करने आरएसएस और बीजेपी ने तमाम हथकंडे अपनाए लेकिन राहुल टस से मस नहीं हुए, ऐसे में गाली कांड को लेकर काला झंडा दिखाने पहुँचे युवाओं के साथ राहुल का अन्दाज़ आपको भी समझना चाहिए…

बिहार में वोटर अधिकार यात्रा पर निकले राहुल गांधी को आरा, भोजपुर के पास आज चार पांच युवकों ने काला झंडा दिखाया। 

राहुल ने गाड़ी रोकी और उन्हें बुलाया।

सुरक्षाकर्मी बुलाने बढ़े तो युवक लगे सरकने। 

एक धरा गया। राहुल ने कहा, उसे मेरे पास ले आओ। 

डरा सहमा युवक जीप के पास आया। राहुल ने उसे जीप पर ऊपर चढ़ाया और पूछा - मुझसे क्यों नाराज हो ?

युवक बोला - पीएम की मां को गाली दी। 

राहुल ने पूछा - क्या मैंने दी? मेरी उपस्थिति में दी? मेरे किसी नेता ने दी?

युवक का गला सूख गया, कंठ से आवाज़ नहीं निकली। 

क्योंकि कोई जवाब नहीं था उसके पास।

राहुल ने उसे पानी पिलाया। टॉफी दी। अपना मुद्दा समझाया। 

और सुरक्षाकर्मियों को ताक़ीद किया कोई इनके साथ मारापीटी औऱ दुर्व्यवहार नहीं करेगा।

युवक आंख नीची कर चला गया।

पता है, काला झंडा दिखाने वाले ये युवक कौन थे ? 

भाजयुमो के विभु जैन, हर्ष राज मंगलम, आदित्य सिंह, महाराणा प्रताप और विकास तिवारी।

लेकिन, इनके नाम और संगठन जानना आपके लिए महत्व की बात नहीं। महत्व की बात ये है कि 

"आज की राजनीति में जब विरोध का सम्मान और असहमति का विवेक खत्म किया जा रहा है तब राहुल गांधी ही वह प्रकाशपुंज हैं जो लोकतंत्र पर गहराते अंधियारे को मिटा सकते हैं।"

क्योंकि उन्हें पता है कि लोकतंत्र, 

विरोध का सम्मान करने से ही पुष्पित पल्लवित होता है। 

राहुल गांधी अद्भुत हैं।अपने पिता और दादी दोनों की निर्मम हत्या देखने वाले राहुल का किसी भी अनजान विरोधी को अपनी गाड़ी पर बुला लेने का ये साहस इस देश की थाती है।


कहां से आती है ये थाती?

राहुल गांधी जिस विरासत के वारिस हैं, उसमें 'साहस' और

'विरोध का सम्मान' के अनेकों किस्से भरे पड़े हैं।


दो पुराने किस्से सुनाता हूं....एक 'साहस' का और एक 'विरोध के सम्मान' का।


1. 'साहस' -

बात कर रहा हूं साल 1944 में हुए गांधीजी के हत्या की दूसरी कोशिश की।

आगाखान महल की लंबी कैद में अपने पुत्रवत महादेव देसाई और 

पत्नी 'बा' को खोकर रिहा हुए गांधीजी बीमार भी थे और बेहद कमजोर भी। 

स्वास्थ्य लाभ और आराम के लिए पुणे के निकट पंचगनी रहने गए। 

पुणे के नजदीक बीमार गांधी का ठहरना सांप्रदायिक गिरोह को 

अपने शौर्य प्रदर्शन का अवसर लगा। बोले तो "आपदा में अवसर"।

सांप्रदायिक गिरोह के लोग गांधी जी के आवास पर पहुंचकर 

लगातार नारेबाजी, प्रदर्शन करने लगे। फिर 22 जुलाई को 

एक प्रदर्शनकारी युवक मौका देखकर गांधी जी की ओर 

छुरा लेकर झपटा। लेकिन, गांधी जी के सहयोगी 

भिसारे गुरुजी ने उसे दबोच लिया और उसके हाथ से छुरा छीन लिया।

गांधी जी ने उस युवा को छोड़ देने का निर्देश देते हुए कहा,

उसको कहो कि वह मेरे पास आकर कुछ दिन रहे ताकि 

मैं जान सकूं कि उसे मुझसे शिकायत क्या है। 

हालांकि वह युवक इसके लिए तैयार नहीं हुआ, भाग खड़ा हुआ। 

उस युवक का नाम नाथूराम गोडसे था।


2. 'विरोध का सम्मान' 

आजादी के तुरत बाद की घटना है। बंटवारे से विस्थापित हुए लोग 

दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में रह रहे थे। प्रधानमंत्री पंडित नेहरू 

अक्सर उन शिविरों में जाकर उनका हालचाल लेते रहते थे।


एक दिन जब वे एक शिविर में गाड़ी से उतर रहे थे, अचानक एक बुजुर्ग महिला ने उनका कालर पकड़ लिया। आसपास मौजूद लोग हक्का बक्का, सुरक्षाकर्मी बढ़े लेकिन नेहरू ने इशारे से रोक दिया। 

गिरहबान पकड़े महिला बोली - आजादी के बाद तुम तो प्रधानमंत्री बन गए, लेकिन हमें क्या मिला ?

पंडित नेहरू ने कहा - अम्मा, आजादी के बाद तुम्हें देश के प्रधानमंत्री की कॉलर पकड़कर अपनी बात कहने का अधिकार मिला है।

यह है गांधी नेहरू की विरासत। यह है इस देश की थाती।

सीने की चौड़ाई और दिल की गहराई ऐसे मापी जाती है।(साभार)

रविवार, 31 अगस्त 2025

न यार मिला, न विसाले सनम…

 न यार मिला, न विसाले सनम…

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तो चीन ने पाकिस्तान को साथ देकर भारत के प्रति अपनी मंशा स्पष्ट कर ही दी थी, मोदी भी छोटी आँख वाले गणेश को याद कर चीन के प्रति सोच ज़ाहिर कई बार किया लेकिन अचानक चीन के गोद में बैठने की नीति किसी को समझ आये या ना आये जीनपिंग समझ चुका है इसलिए जब मोदी चीन पहुँचे तो….

एक तस्वीर निकलकर बाहर आई इस तस्वीर ने सब कुछ साफ़ कर दिया कि चीन के लिये भारत या मोदी के क्या मायने है , इस तस्वीर में तमाम राष्ट्रप्रमुखों की तस्वीर में मोदी सबसे किनारे खड़े है  तब यह जानना ज़रूरी है कि आख़िर चीन कर क्या रहा है …

दो दिन पहले मेने लिखा था कि ट्रम्प ने टेरिफ की नाव में भारत को ब्राज़ील के साथ बैठा दिया है ! आज वैसा ही कुछ चीन ने किया। पैरों में घुंघरू बाँध बैठे मीडिया में चल रहा है कि चीन ने हमें गले लगा लिया है ( ऐसा सोशल मीडिया में चल रहा है ) मोदी के साथ पाकिस्तान के शाहबाज भी चीन पहुंचे है। उनकी अगवानी में चीन मंत्रिमंडल और प्रशासन  के पंद्रह से ज्यादा लोग मौजूद थे , मोदी को केवल तीन लोगों ने रिसीव किया उनकी हैसियत भी पार्षदों से ज्यादा की नहीं थी। दोनों को रेड कारपेट वेलकम मिला। पाकिस्तान को हमसे ज्यादा भाव मिला। 

आगे के समाचार  अंधभक्तो का दिल तोड़कर रख देंगे। 

चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत सरकार को पहले ही आगाह कर दिया था कि ' गले पड़ने ' की रस्म नहीं होगी। सिर्फ हैंड शेक हो सकता है। अपनी हद में रहो। इसलिए ' मिलनी ' की रस्म का एक भी फोटो अब तक नजर नहीं आया है।  एक वीडियो में जिनपिंग मोदी के बढ़ाये हाथ को नजरअंदाज कर आगे बढ़ते नजर आ रहे है। 

महामानव के साथ इतना बदतर व्यवहार क्यों हो रहा है ? ट्रम्प के डर से हम ' क्वाड ' में भी शामिल हो गए और पुतिन से तेल खरीदने के चक्कर में एस सी ओ ' में भी घुस गए। जबकि दोनों एक दूसरे के विपरीत ध्रुव है। बहरहाल ट्रम्प और जिनपिंग दोनों समझ गए है कि भारत की विदेश नीति की लंका इस ढुलमुल डांकापति ने लगा दी है ! इसे जिधर चाहे उधर घुमाया जा सकता है। 

चीन के साथ हमारी द्विपक्षीय वार्ता भी बे नतीजा रही है। 

चीन ने पुचकार कर कुछ ऐसी शर्ते रख दी है जिसे सुनकर मोदी के होश उड़ गए है। अब चार हजार किलोमीटर की कब्जाई जमीन को  तो भूल ही  जाओ और सिक्किम , तिब्बत  और अरुणाचल को भी अपने नक़्शे से हटाओ।

 नरेंद्र मोदी की इतनी धज्जियां डिअर फ्रेंड डोलांड ने भी नहीं उड़ाई जितनी शी जिनपिंग ने बखिया उधेड़ दी है। 

भारत एस  सी ओ  से खाली हाथ लौट रहा है। 

न ही यार मिला न विसाले सनम।(साभार)

शनिवार, 30 अगस्त 2025

मोदी से पहले कौन पहुँचा जापान…

 मोदी से पहले कौन पहुँचा जापान…

राहुल के नाम क्यों हो रहा यह पत्र वायरल…

मोदी का जापान दौरा हर बार की तरह चर्चा में है, भक्तों और गोदी मीडिया का अतिरेक यह बात आपको नहीं बताएगा कि मोदी के पहले कौन जापान पहुँचकर रंग में भंग कर दिया, लेकिन इधर भारत में राहुल गांधी को संबोधित कर लिखा गया पत्र जमकर वायरल होने लगा है…

सेवानिवृत्ति की उम्र को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत पलट गये तो इसकी वजह मोदी शाह की ताक़त है, इस दौर में गिनती के लोग हैं जो मोदी की ख़िलाफ़त करने का साहस लिए है ऐसे में इस ताकतवर मोदी के जापान पहुंचने से पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू वहां पहुंच गये और मोदी की यात्रा के मज़ा को किरकिरा कर दिया!

मोदी जी जापान गए हैं.

जापान के प्रसिद्ध लेखक पद्मश्री डॉ. तोमियों मिजोकामी ने मोदी जी से मिलने के बाद कहा ----

"जिस देश के नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू जी थे. उनके देश की संस्कृति और भाषा क्यों न सीखी जाए!"

इसलिए मैने हिंदी सीखी !

समझ रहे हैं आप.. 

नहीं समझे तो राहुल गांधी को लिखे डॉ राकेश पाठक का इस पत्र को एक बार ज़रूर पढ़ ले…

★ प्रिय राहुल गांधी, उन जैसे मत बन जाना..!

सबसे पहली बात तो ये कि आपको देश के प्रधानमंत्री के बारे में उस तरह के शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जैसा आपने एक जनसभा में किया है।

आप डॉनल्ड ट्रंप के हवाले से कुछ कह रहे थे तब भी शब्दों के चयन में सतर्कता बरतना चाहिए।

व्यक्ति के तौर पर अपनी कथनी करनी से नरेंद्र मोदी भले ही सम्मान के योग्य न रहे हों लेकिन वे जिस पद पर हैं उसका मान रखना ही चाहिए। 

भले ही ख़ुद उन्होंने कभी अपने पद की गरिमा का मान नहीं रखा हो तब भी।

हां हम जानते हैं कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपकी मां के लिए 'जर्सी गाय' जैसे शब्दों का प्रयोग किया है।

★ तब भी उनका जैसे मत बन जाना।

हां हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने आपकी मां को 'कांग्रेस की विधवा' कहा है।

★तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हां हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने आपकी मां के लिए बेहद अभद्र तरीके से कहा था कि 'वो चुनाव नहीं लड़ेगी भाग जाएगी।'

★ तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

(हो सकता है आप न जानते हों... चंबल घाटी में मां का इतना अपमान होने पर तो बेटे बंदूक उठा लेते हैं।)

हां हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी ने आपके परनाना, आपकी शहीद दादी, आपके शहीद पिता के बारे में भी निरंतर स्तरहीन, अभद्र, अशालीन, असभ्य भाषा का प्रयोग किया है।

★तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हां हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने आपके एक सहयोगी की दिवंगत पत्नी को 'पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड' कहा है।

तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हां हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने आपकी पार्टी की एक महिला सांसद की हंसी की तुलना शूर्पणखा की हंसी से की है।

★तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने एक महिला मुख्यमंत्री को सड़कछाप अंदाज़ में मंच से दीदी ओ दीदी संबोधित किया था।

★ तब भी उन जैसे मत बन जाना।

हां हम जानते हैं कि उनकी भाषा मुजरा, मंगलसूत्र, भैंस, जैसे शब्दों से सुशोभित होती है जो कि प्रधानमंत्री पद के अनुरूप कदापि नहीं होती।

★ तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हां हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी और उनके संगठन ने आपकी चरित्र हत्या, आपकी छवि हत्या के लिए हजारों करोड़ रु खर्च करके अभियान चलाया है, आज भी चल रहा है।

★ तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हां हम जानते हैं कि आज़ाद भारत के इतिहास में झूठ और नफ़रत के जरिए जितना अपमान आपका और आपके परिजनों का किया गया है उतना किसी का नहीं।

★ तब भी उनके जैसा नहीं बन जाना।

हां हम जानते हैं कि सार्वजनिक जीवन में जो कुछ आपने सहा है उसके कारण आपके भीतर आक्रोश का लावा धधक रहा होगा जो कभी कभार बाहर आ जाता है लेकिन उसे भीतर ही रहने दीजिए। 

उसे जुबान पर मत लाइए।

वैसे भी महात्मा गांधी ने विचार और शब्द की हिंसा से भी बचने को कहा है। आपको इससे बचना चाहिए।

एक नागरिक के तौर पर हमें हक़ है कि हम आपकी इस तरह की भाषा पर आपत्ति दर्ज़ कराएं।  

ये हक़ हमें इसलिए भी है क्योंकि जब हम नरेंद्र मोदी की भाषा पर ऐतराज करते हैं तो आपको भी नहीं बख्शेंगे।

हमारा एक सवाल ये भी..

★ अगर अच्छे दिनों में नरेंद्र मोदी की बराक ओबामा से 'तू तड़ाक' में बात होती थी तो बुरे दिनों में डॉनल्ड ट्रंप 'तू तड़ाक' में धमकी नहीं दे सकते क्या?

★ नोट : राहुल को नसीहत देने वाले पहले अपने गिरेबान में झांक कर बताएं कि जब जब नरेंद्र मोदी ने स्तरहीन शब्द बोले तब वे कहां थे? 


शुक्रवार, 29 अगस्त 2025

राहुल गांधी और तोता मैना…





 राहुल गांधी और तोता मैना…

आज हम तोता मैना की एक कहानी सुनाये उससे पहले बता देते हैं कि मोदी और उसकी माँ को गाली देने वाला कृषि मंत्री शिवराज सिंह का करीबी भाजपाई निकला, दरअसल ये सारा कुचक्र वोट चोरी से ध्यान भटकाने के लिए किया गया था, अब क्या अमित शाह, विष्णुदेव साय माफ़ी माँगेगे…

क्या राहुल ने गाली दी..?  क्या राहुल के सामने किसी ने गाली दी? क्या राहुल की सभा के दौरान किसी ने गाली दी?

इन सभी सवालों का जवाब है- नहीं!

लेकिन पूरी बीजेपी कह रही है, माफ़ी माँगें। ये तो खुला षडयंत्र है। सभा समाप्त होने के बाद किसी ने जाकर कुछ कह दिया। तुरंत उसका वीडियो बन गया और बीजेपी नेताओं के पास पहुँच गया...! क्या यह सामान्य है? 

बिहार में सरकार तो एनडीए की है। पता करे कि किसने गाली दी, पकड़िए. सज़ा दीजिए। प्रेस कान्फ्रेंस नहीं एफआईआर कीजिए।

वैसे अनजान आदमी की गाली के लिए अगर राहुल माफ़ी माँगें तो फिर भरी संसद में रमेश विधूड़ी की गाली के लिए कौन माफ़ी माँगेगा?

और कांग्रेस की विधवा, जर्सी गाय जैसे बदबूदार शब्द तो महामानव के मुखारबिंद से ही निकले थे। माँगेंगे माफ़ी?

सच्चाई ये है कि राहुल गाँधी की निरंतर बढ़ती लोकप्रियाता से पीेएम मोदी और बीजेपी बुरी तरह घबरा गये हैं। षड़यंत्र के अलावा कोई चारा नहीं है। पर जनता सब जानती है। इस बार बेहद महँगा पड़ेगा। और अभी तो सिर्फ़ शुरुआत है...!

लेकिन यह सब खुलकर सामने आ गया कि भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के रिजवी को सोची समझी रणनीति और साजिश के तहत कांग्रेस के मंच पर भेजा गया. रिजवी ने मंच पर मोदी की मां को गाली दी और वहां से खिसक गया. रिजवी की तस्वीर भाजपा के बड़े नेता शिवराज सिंह चौहान के साथ भी देख सकते हैं.

इसके बाद पूरे देश की गोदी मीडिया, भाजपा के आइटी सेल एवं अंधभक्तों ने पूरे देश में भौकाल मचा दिया. माहौल को गर्मा कर बिहार में विरोध के नाम पर गुंडागर्दी शुरू हो गई.पूरे प्रदेश कांग्रेस के दफ्तर पर आज भाजपा के गुंडों ने हमला किया गया है.

पटना में कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय पर बिहार के एक मंत्री के नेतृत्व में हमला किये जाने की खबर है जिसमें व्यापक स्तर पर तोड़फोड़ की गई है.

भाजपा को ऐसा लगने लगा है कि बिहार में उसके खिलाफ व्यापक जन आक्रोश है और सत्ता हाथ से निकल सकती है.

इसी के मद्देनजर अपने कार्यकर्ता से गाली दिलवाकर बिहार को अराजकता में धकेला जा रहा है. इसका उद्देश्य कांग्रेस को बदनाम कर महागठबंधन को सत्ता से दूर करना है.

बिहार के मुख्यमंत्री मानसिक रूप से बीमार हैं. सत्ता का संचालन नेताओं एवं नौकरशाहों के एक गिरोह के द्वारा किया जा रहा है जो भाजपा के एजेंट के रूप में काम कर रहा है. इस स्थिति में चुनाव तक बिहार को लगातार अराजक स्थिति में चुनावी फायदे के लिए धकेला जायेगा.

तब ऐसे में तोता मैना की यह कहानी ज़रूर पढ़नी चाहिए…

तोता और मैना जब एक उजड़ी हुई वीरान बस्ती से गुजर रहे थे तो मैना ने कहा : " किस क़दर वीरान बस्ती है ?

तोता बोला :" लगता है जैसे यहाँ से किसी उल्लू का गुजर हुआ है , जिस वक़्त तोता और मैना में ये बातें हो रही थी उसी समय एक उल्लू भी उधर से जा रहा था , उसने तोते की बात सुनी और उससे मुखातिब हो कर कहा कि तुम लोग इस बस्ती में  मुसाफिर लगते हो , आज रात मेरी मेहमान नवाजी क़ुबूल करो और साथ खाना खाओ ।

उल्लू की मोहब्बत भरी दावत से तोता और मैना का जोड़ा इंकार न कर सका और उन्होनें दावत क़ुबूल कर ली , खाना खाकर जब उन्होने रुख्सत होने की इजाजत चाही तो उल्लू ने मैना का हाथ पकड़ लिया और कहा :" तुम कहाँ जा रही हो ?

मैना परेशान होकर बोली ...ये भी कोई पूंछने की बात है ? मैं अपने हस्बेंड के साथ जा रही हूँ । उल्लू यह सुनकर हंसा और कहा : ये तुम क्या कह रही हो तुम तो मेरी वाइफ हो । उल्लू की ये बात सुनकर तोता और मैना दोनों उल्लू पर झपट पड़े और झगड़ा शुरू हो गया ।

जब बहस और तकरार हद से ज्यादा बढ गई तो उल्लू ने एक सलाह दी और कहा कि हम तीनों अदालत चलते हैं और जज के सामने अपना मामला रखते हैं , जज जो फैसला करेगा वह हमें मंजूर होगा । उल्लू की तरकीब पर तीनों अदालत में पैश हुए , जज ने दलीलों और सबूतों के आधार पर उल्लू के हक़ में फैसला सुनाया और अदालत बर्खास्त कर दी ।

तोता इस बे इंसाफी पर रोता हुआ जा रहा था तभी पीछे से उल्लू ने आवाज लगाई "भाई अकेले कहाँ जा रहे हो अपनी बीवी को तो साथ लेते जाओ " तोते ने हैरानी से उल्लू की तरफ देखा और कहा : ये अब मेरी बीवी कहाँ है अदालत ने तो इसे तुम्हारी बीवी क़रार दिया है ?


नही दोस्त । मैना तुम्हारी ही बीवी है , बस मैं तुम्हे ये बताना चाहता था कि बस्तियां उल्लू वीरान नही करते , बस्तियाँ तब वीरान होती है जब उन मे से इंसाफ खत्म हो जाता है ।(साभार)


गुरुवार, 28 अगस्त 2025

विपुल पांचोली और न्यायिक विश्वसनीयता…

 विपुल पांचोली और न्यायिक विश्वसनीयता…


सारी संस्थाओं को मुट्ठी में रखने की कोशिश का मतलब ही तानाशाही होता है, यदि सब कुछ सरकार के इशारे पर चले तो आपातकाल की घोषणा की जाय या नहीं कोई मायने नहीं रखता, तब संसद में आवाज़ भी नक्कार खाने की तूती की तरह हो गई है, संवैधानिक संस्थान ही नहीं देश के संसाधनों पर भी मित्रों के ज़रिये क़ब्ज़ा क्या तानाशाह नहीं है, लेकिन आज बात जस्टिस नागरत्ना की हिम्मत और गवई की लाचारी…

राहुल गांधी के दो साल सजा को बरकरार रखने वाले  जस्टिस विपुल पंचोली बने सुप्रीम कोर्ट में जज..!!

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस विपुल पंचोली के विवादास्पद क्रेडिबिलिटी के कारण उन्हें गुजरात से बिहार के पटना हाईकोर्ट में ट्रान्सफर किया गया था। किन्तु पिछले महीने 21जुलाई को वहां का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया,

और अब जस्ट एक ही महीने में आज उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया गया है।

इनके नियुक्ति, न्यायिक इंटीग्रिटी, संवैधानिक एवं विधिक योग्यता पर मीडिया एवं सिविल सोसायटी में सवाल खड़े किए गए हैं।

इस मुद्दे पर 'कैम्पेन फॉर जुडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स'  नामक संस्था ने भी बयान जारी किया।

सीजेएआर ने कहा- सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों के कोलेजियम में जस्टिस पंचोली की नियुक्ति 4-1 के बहुमत से हुई, 

क्योंकि जस्टिस नागरत्ना ने असहमति जताई। और कहा कि इस नियुक्ति से न्याय प्रशासन एवं कोलेजियम प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल उठेगा।

सीजेएआर के मुताबिक जस्टिस पंचोली गुजरात से सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाले तीसरे जज हैं, जो गुजरात हाईकोर्ट के आकार की तुलना में असंतुलित प्रतिनिधित्व है। 

साथ ही वे हाईकोर्ट जजों की ऑल इंडिया सीनियरिटी लिस्ट में 57वें नंबर पर हैं।

पर अब इनसे 57 सीनियर जजों को दरकिनार करते हुए इन्हें जज बना दिया गया है। और 2031 में यही महान न्यायमूर्ति हमारे देश के मुख्य न्यायाधीश भी बनेंगे।

यह नियुक्ति जिस सीजेआई द्वारा की गई है वह बाबा साहब डॉ अम्बेडकर को अपना आदर्श मानते हैं, बौद्ध एवं दलित हैं। जिस सिस्टम में की गई है वह कोलेजियम है, जो पूर्ण स्वायत्त है। 

इसलिए सरकारी हस्तक्षेप के आरोप से मोदी सरकार टेक्निकली पूरी तरह बरी एवं फ्री है।(साभार)


Vishwajit Singh

बुधवार, 27 अगस्त 2025

अमेरिकी दादागिरी की असली वजह क्या अदानी से जुड़ा है

 अमेरिकी दादागिरी की असली  वजह क्या अदानी से जुड़ा है…


मोदी सत्ता भी ग़ज़ब है कल तक नियम क़ानून को ताक पर रखकर अंबानी बंधुओं की मदद करते नहीं थकती थी , वह आज उन्हें जाँच एजेंसियों से डराने लगी है, इस छापेमारी को तो लोग जगदीप धनखड़ के इस्तीफ़े और तख्ता पलट की क़वायद से भी जोड़ रहे हैं तब अमेरिकी टैरिफ़ को लेकर चल रही लड़ाई क्या मोदी अदानी का कोई खेल है जिसका भारत को नुक़सान उठाना पड़ रहा है…

अमेरिकी टैरिफ़ का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह सब बताये उससे पहले बता देते हैं कि मोदी ने कभी दावा किया था कि ट्रंप उनके सबसे अच्छे मित्र है और सिर्फ़ दावा नहीं बल्कि उन्हें जीताने ज़मीन आसमान छान दिया था, 

ऐसे में अचानक यह सब क्या हो गया, कहा जाता है कि ट्रंप और अदानी के कुछ व्यापारिक ख़ून्नास या धोखाधड़ी का मामला है, तो क्या अदाणी ने ट्रंप के साथ चिटिंग की, 

ट्रंप के द्वारा अंबानी को तवज्जो देने की यही वजह बताई जा रही है तब अंबानी का धनखड़ के साथ खेल के पीछे क्या ट्रंप है और अब अंबानी धनखड़ के साथ निशाने पर है

यह सब चलता रहेगा तब अमेरिका द्वारा भारत पर लगाया गया 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ आज (बुधवार) से प्रभावी हो जाएगा। इस कदम का सीधा असर भारत के परिधान, टेक्सटाइल, रत्न-आभूषण, लैदर, कालीन और फर्नीचर जैसे श्रम आधारित उद्योगों पर पड़ेगा । 

अमेरिकी प्रशासन द्वारा इसे पहले जुलाई 2025 में 25 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया गया था। इसके बाद अब दूसरी बार 27 अगस्त 2025 लगाया जा रहा है। अमेरिका का कहना है कि भारत रूस से लगातार तेल की खरीद कर रहा है जिससे रूस यूक्रेन  युद्ध में रूस को आर्थिक मजबूती मिल रही है इसलिए यह टैरिफ रूस यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए जरूरी है जिस कारण से यह नया टैरिफ लगाया गया है।

इसके जवाब में गुजरात में प्रधानमंत्री ने एक रैली में अपने भाषण में अमेरिका और ट्रंप का नाम लिए बिना जो  कहा उसके कुछ अंश  

"दुनिया में आर्थिक स्वार्थ वाली राजनीति, सब कोई अपना करने में लगा है, उसे हम भलीभांति देख रहे है और में गांधी की धरती से बोल रहा हूं, दबाव कितना भी आए हम झेलने की अपनी ताकत बढ़ाते जाएंगे"

हालांकि एक तरफ आत्मनिर्भरता के दावे किए  जा रहे है और दूसरी तरफ दबाव को झेलते जाने के भाषण में शब्द एक विरोधाभास है आत्मनिर्भरता के प्रयास के तहत आज भारत में स्वदेशी निर्मित पहली मारुति इलेक्ट्रिक कार को हरी झंडी दिखाई गई यह एक कदम जरूर है लेकिन क्या यह पर्याप्त है जबकि अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया जाता है और बहुत बड़ी जनसंख्या वाले देश में मात्र कुछ फीसद लोग ही महंगी कार को खरीद सकते है ।

भारत को इस वैश्विक व्यापार असंतुलन के दौर में अन्य विकल्पों की तलाश कर अमेरिका की इस व्यापारिक आर्थिक दादागिरी को जवाब देना चाहिए साथ ही ऑपरेशन सिंदूर भारत पाक युद्ध सीजफायर के ट्रंप के दावे को स्पष्ट भाषा में जवाब देना चाहिए ताकि भारत की प्रभुसता अक्षुण्ण रहे । 140 करोड़ नागरिक और भारतीय संसद व्यापारिक और रणनीतिक मामलों में स्वयं निर्णय लेता है और किसी भी अन्य राष्ट्र की दखल को मंजूर नहीं करेगा । भारतीय लोकतंत्र संविधान निश्चित ही असंख्य संघर्षों बलिदानों से अर्जित किया गया है । इसके मूल्यों और संप्रभुता की रक्षा करना हर देशवासी नेता, प्रशासनिक अधिकारी  या नागरिक सबका फर्ज है । भले ही भारत को टैरिफ या सीजफायर के बयान या दबाव से ट्रंप कमजोर करने की कोशिश में है लेकिन भारत एक संप्रभु,लोकतांत्रिक गणराज्य है और गणतांत्रिक राष्ट्र रहेगा यह दुनिया जान ले ।

इसके साथ ही भारत को अपनी विदेश नीति और व्यापार नीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है क्योंकि अमेरिका इस द्विपक्षीय व्यापारिक संबंध में अधिक झुकाव अपनी तरफ चाह रहा है इसके साथ ही ट्रंप के लिए किए गए प्रधानमंत्री मोदी के पूर्व चुनावी दावे और करोड़ों रुपयों के आयोजनों पर भी पुनर्विचार करना चाहिए । और व्यापारिक और रणनीतिक मामलों में नए विकल्पों को तलाशना चाहिए । आत्मनिर्भरता की सिर्फ नारेबाजी से नहीं जमीनी स्तर पर शोध और विकास के साथ कृषि, व्यापार, विज्ञान तकनीकी के साथ मानव संसाधन का सकारात्मक उपयोग कर नए रोजगार सृजन, शिक्षा स्वास्थ्य, सड़क, और  निर्माण क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए नए आयाम तलाश कर आर्थिक मजबूती की तरफ कदम बढ़ाने चाहिए ।(साभार)

सोमवार, 25 अगस्त 2025

पीएम केयर फंड पर उठते सवाल..

 पीएम केयर फंड पर उठते सवाल…


मोदी सत्ता के दौर में देश के प्रधानमंत्री का डिग्री को लेकर उठते सवालों के बीच पीएम केयर फंड को लेकर भी सवाल उठने लगे है, ग़ज़ब पीएम का अज़ब खेल की तर्ज़ पर चल रहे खेला का मतलब सरल भाषा में समझिए…

पीएम केयर फंड को लेकर उठते सवाल के बारे में बताये उससे पहले बता देते हैं कि बहुत सारे लोग सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं कि कब तक बचोगे? जब भी दूसरी सरकार बनेगी, डिग्री सार्वजनिक हो जाएगा। पर ऐसे लोग भूल रहे हैं कि शॉर्ट सर्किट से लगी आग,.. पानी में गल जाने...या चूहों के कतरने से कैसे रोक पाओगे?

 याद है न ! यही सरकार है ,जो सुप्रीम कोर्ट में बता चुकी है कि राफेल सौदे की फाइल चोरी हो गई है।

खैर, वर्तमान में हमारी देश की न्यायपालिका, विधायिका ,कार्यपालिका तीनों की लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता स्टेक पर है...!!

या सबसे बड़ा सवाल तो उस पीएम केयर फंड का है जिसे प्रचारित इस ढंग से किया गया मानो यह सरकारी हो ।लेकिन यह भ्रम भी अच्छे दिन की तरह टूट गया क्यों कि सरकार की निगाह में चुनावी नतीजे सरकार की नीतियों का जनता द्वारा अनुमोदन है। सरकार ने 24-03-2020 को लाॅक डाऊन कर दिया और 27-03-2020 प्रधान मंत्री जी ने टीवी पर आकर "पीएम केयर्स फंड" की घोषणा कर दी। इसे कहतें "आपदा में अवसर" आपदा तो जनता के लिए थी पर गुजरात के व्यापारी (डीएनए) ने उसमें मौका तलाश कर लिया। लोगों ने समझा कि शायद यह प्रधान मंत्री जी का जनता की केयर करने के लिए सरकारी फंड है। जबकि प्रधान मंत्री आपदा फंड और प्रधान मंत्री रीलीफ़ फंड पहले से ही मौजूद था। इस नये फंड का औचित्य समझ से बाहर था। लेकिन कहा गया है कि आपातकाल में लोगों की सोचने की शक्ति क्षीण हो जाती है। लोगों ने सरकार के कहने पर अपने वेतन का भी अंशदान किया। बहुत से लोगों ने अपनी पेट काट कर की बचत भी इस फंड में डाल दी ताकि प्रधान सेवक ग़रीब जनता के लिए फंड से मदद मुहैय्या करवा सकें।

लेकिन जब इस फंड के एकाउंट के बारे में पूछताछ की तो सरकार ने कहा," यह सूचना के अधिकार-2005 के दायरे से बाहर है। इसलिए कोई जानकारी देने की ज़रूरत नहीं है।

लेकिन लोग कहां मानते है वह सुप्रीम कोर्ट चले गए।  अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा,"यह कोई सरकारी फंड है ही नहीं। यह तो प्राइवेट फंड है।" हम तो समझ रहे थे कि जिस फंड के ट्रस्टी प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री वित्त मंत्री और पीएमओ है और वह सरकारी चिन्ह इस्तेमाल कर रहें हैं वो प्राइवेट कैसे हो सकता है। लेकिन सरकार तो भी सरकार है, वो भी विश्व गुरू की वो कहां जवाब देती है।

पता लगा कि वर्ष 2021 के बाद इस फंड का ऑडिट तक नहीं हुआ। जो थोड़ा-बहुत एक-डेढ़ पेज के ऑडिट से पता लगा कि इस फंड से वेंटिलेटर खरीदे गए थे। कहां से, किस के लिए और कैसे खरीदे गए यह गोपनीय सूचना है। यह भी पक्के तौर पर पता नहीं है कि इस फंड में कितना पैसा है और किसने जमा किया है। यह भी किसी को नहीं पता। उड़ती खबर है कि इसमें बीस हजार करोड़ रुपए जमा हैं।

खैर साधारण आदमी होता तो सारी जांच एजेंसियाँ लग गई होती पीछे टीवी कैमरों समेत, सूत्रों से जानकारियां टीवी पर मिलती और गिरफ्तारियां हो जाती लेकिन सरकार के कामकाज पर कौन सवाल उठा सकता है। प्रधान मंत्री की केयर देखभाल करने के लिए यह प्राइवेट फंड है।

वैसे बदले हालात में जब विपक्ष मजबूत है और सरकार बहुमत के आंकड़े से दूर तो इस पीएम फंड की भी कुछ सुधि यानी केयर होनी चाहिए। पता तो लगे पीएम की कौन-कौन केयर कर रहा था और फंड किसकी केयर में लगा था।(साभार)