जब काला झंडा दिखाने वाले को राहुल ने बुला लिया…
राहुल गांधी के बिहार यात्रा को असफल करने आरएसएस और बीजेपी ने तमाम हथकंडे अपनाए लेकिन राहुल टस से मस नहीं हुए, ऐसे में गाली कांड को लेकर काला झंडा दिखाने पहुँचे युवाओं के साथ राहुल का अन्दाज़ आपको भी समझना चाहिए…
बिहार में वोटर अधिकार यात्रा पर निकले राहुल गांधी को आरा, भोजपुर के पास आज चार पांच युवकों ने काला झंडा दिखाया।
राहुल ने गाड़ी रोकी और उन्हें बुलाया।
सुरक्षाकर्मी बुलाने बढ़े तो युवक लगे सरकने।
एक धरा गया। राहुल ने कहा, उसे मेरे पास ले आओ।
डरा सहमा युवक जीप के पास आया। राहुल ने उसे जीप पर ऊपर चढ़ाया और पूछा - मुझसे क्यों नाराज हो ?
युवक बोला - पीएम की मां को गाली दी।
राहुल ने पूछा - क्या मैंने दी? मेरी उपस्थिति में दी? मेरे किसी नेता ने दी?
युवक का गला सूख गया, कंठ से आवाज़ नहीं निकली।
क्योंकि कोई जवाब नहीं था उसके पास।
राहुल ने उसे पानी पिलाया। टॉफी दी। अपना मुद्दा समझाया।
और सुरक्षाकर्मियों को ताक़ीद किया कोई इनके साथ मारापीटी औऱ दुर्व्यवहार नहीं करेगा।
युवक आंख नीची कर चला गया।
पता है, काला झंडा दिखाने वाले ये युवक कौन थे ?
भाजयुमो के विभु जैन, हर्ष राज मंगलम, आदित्य सिंह, महाराणा प्रताप और विकास तिवारी।
लेकिन, इनके नाम और संगठन जानना आपके लिए महत्व की बात नहीं। महत्व की बात ये है कि
"आज की राजनीति में जब विरोध का सम्मान और असहमति का विवेक खत्म किया जा रहा है तब राहुल गांधी ही वह प्रकाशपुंज हैं जो लोकतंत्र पर गहराते अंधियारे को मिटा सकते हैं।"
क्योंकि उन्हें पता है कि लोकतंत्र,
विरोध का सम्मान करने से ही पुष्पित पल्लवित होता है।
राहुल गांधी अद्भुत हैं।अपने पिता और दादी दोनों की निर्मम हत्या देखने वाले राहुल का किसी भी अनजान विरोधी को अपनी गाड़ी पर बुला लेने का ये साहस इस देश की थाती है।
कहां से आती है ये थाती?
राहुल गांधी जिस विरासत के वारिस हैं, उसमें 'साहस' और
'विरोध का सम्मान' के अनेकों किस्से भरे पड़े हैं।
दो पुराने किस्से सुनाता हूं....एक 'साहस' का और एक 'विरोध के सम्मान' का।
1. 'साहस' -
बात कर रहा हूं साल 1944 में हुए गांधीजी के हत्या की दूसरी कोशिश की।
आगाखान महल की लंबी कैद में अपने पुत्रवत महादेव देसाई और
पत्नी 'बा' को खोकर रिहा हुए गांधीजी बीमार भी थे और बेहद कमजोर भी।
स्वास्थ्य लाभ और आराम के लिए पुणे के निकट पंचगनी रहने गए।
पुणे के नजदीक बीमार गांधी का ठहरना सांप्रदायिक गिरोह को
अपने शौर्य प्रदर्शन का अवसर लगा। बोले तो "आपदा में अवसर"।
सांप्रदायिक गिरोह के लोग गांधी जी के आवास पर पहुंचकर
लगातार नारेबाजी, प्रदर्शन करने लगे। फिर 22 जुलाई को
एक प्रदर्शनकारी युवक मौका देखकर गांधी जी की ओर
छुरा लेकर झपटा। लेकिन, गांधी जी के सहयोगी
भिसारे गुरुजी ने उसे दबोच लिया और उसके हाथ से छुरा छीन लिया।
गांधी जी ने उस युवा को छोड़ देने का निर्देश देते हुए कहा,
उसको कहो कि वह मेरे पास आकर कुछ दिन रहे ताकि
मैं जान सकूं कि उसे मुझसे शिकायत क्या है।
हालांकि वह युवक इसके लिए तैयार नहीं हुआ, भाग खड़ा हुआ।
उस युवक का नाम नाथूराम गोडसे था।
2. 'विरोध का सम्मान'
आजादी के तुरत बाद की घटना है। बंटवारे से विस्थापित हुए लोग
दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में रह रहे थे। प्रधानमंत्री पंडित नेहरू
अक्सर उन शिविरों में जाकर उनका हालचाल लेते रहते थे।
एक दिन जब वे एक शिविर में गाड़ी से उतर रहे थे, अचानक एक बुजुर्ग महिला ने उनका कालर पकड़ लिया। आसपास मौजूद लोग हक्का बक्का, सुरक्षाकर्मी बढ़े लेकिन नेहरू ने इशारे से रोक दिया।
गिरहबान पकड़े महिला बोली - आजादी के बाद तुम तो प्रधानमंत्री बन गए, लेकिन हमें क्या मिला ?
पंडित नेहरू ने कहा - अम्मा, आजादी के बाद तुम्हें देश के प्रधानमंत्री की कॉलर पकड़कर अपनी बात कहने का अधिकार मिला है।
यह है गांधी नेहरू की विरासत। यह है इस देश की थाती।
सीने की चौड़ाई और दिल की गहराई ऐसे मापी जाती है।(साभार)